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देश की सबसे बड़ी जांच एंजेसि सीबीआइ की विश्वसनियता पर अब सवालिया निशान लगता दिख रहा है । एक के बाद एक सीबीआई ऐसे फैसले ले रही है जिससे लोगों में सीबीआई की विश्वसनियता कम होती जा रही है । आखिर जब दोषी को सजा सीबीआई ना दिला पाये तो जनता अपनी फरियाद कहां ले के जायेगी । सीबीआई पर उठते सवाल के मुख्यतः दो कारण है । पहला बहुचर्चित मामला आरुषि तलवार तथा दूसरा मामला बोफोर्स है । वर्तमान मे ये दो ऐसे मामले हैं जहाँ सीबीआई को मुंह की खानी पड़ी और चहुं ओर आलोचना झेलना पड़ रहा है । आरुषि कांड पर सीबीआइ ने हार मान ली है और केस को बंद करने तक का फरमान दे दिया है । सवाल यहीं उठता है सीबीआई की विश्वसनियता पर । अगर इसके तह तक जायें तो पता चलता है कि सीबीआई द्वारा बनाये गये क्लोजर रिपोर्ट और जांच पड़ताल से अभी इस मामले को बंद करने का कोई औचित्य ही नहीं है, क्योंकि जांच दल के अधिकारी अब भी इस काम पर लगे हुए है । सीबीआई का कहना है उनके पास अभी एसे कोई सबूत नहीं हैं जिससे वे दोषियों को सजा दिलवा पायें ।
अगर सीबीआई के पास पर्याप्त सबूत नहीं थे तो उन्होनें आरुषि के पिता को गिरफ्तार क्यों किया ? ये समझ के परे है तो क्या इसका ये अनुमान लगाया जाये कि सीबीआई अंधेरे में तीर मारकर दोषी को ढूंढने का काम कर रही है । शायद तब सीबीआई को इसकी भनक नहीं थी कि ये केस इतना पेचिदा हो जायेगा । उस समय जब राजेश तलवार की गिरफ्तारी हुई तो मीडिया में उन्हे कंलकित बाप कहा गया था , इन आरोपों का जिम्मेदार कौन है ?? क्या बिना जांच पड़ताल किए किसी पर इस तरह का घिनौना आरोप लगाना जायज है ? लेकिन क्या अब राजेश तलवार मान हानि का दावा पेश करंगे , अगर हाँ तो जांच कौन समिति करेगी ये भी मायने रखता है । सीबीआई ने न सिर्फ खूद की विश्वसनियता खोई आने वाले समय में खूद के वजूद को भी दाव पर लगा दिया है । सीबीआई का ये कोई पहला मौका नहीं है जब उसने क्लोजर रिपोर्ट लगाई हो । ऐसे और कई मामले रहे है जिसमे सीबीआई पूरी तरह से अपनी जांच प्रक्रिया में और दोषियों तक पहुंचने मे विफल रही है । अभी आरुषि केस के असफलता की सफलता खत्म भी नहीं हुई थी अचानक बोफोर्स मामला एक बार फिर सामने आ गया । सीबीआई ने इस जांच को भी बंद करने का फैसला ले लिया है । ये मामला इतना ज्यादा खिंच चुका है कि मैं इसपर ज्यादा कुछ कह नही कह पाऊंगा , शायद जब ये मामला उजागर हुआ होगा तब मेरी उम्र खेलने-कूदनें वाली रही होगी , इससे आप अंदाजा लगा सकते है । मीडिया में आई रिपोर्टों के अनुसार आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण इस सौदे में तबरीबन ४१ करोड़ रुपये की दलाली खाए जाने की बात कही गई है । सीबीआई का कहना है विन चड्ढा अथवा उसके वारिस को दलाली की रकम का टैक्स चुकता करना चाहिए जबकि सीबीआई के पास इसके खिलाफ कोई सबूत नहीं है ।
केरल में 1992 में एक नन सिस्टर अभया की हत्या हो गई थी, जिसकी जांच सीबीआई को सौंपी गईं। सबूतों के अभाव का हवाला देकर एजेंसी ने चार बार इस मामले को बंद करने की कोशिश की, लेकिन अदालत ने हर बार जांच जारी रखने का आदेश दिया।आखिरकार 17 सालों बाद जून 2009 को सीबीआइ ने इस मामले तीन आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की, जिनपर अदालत में सुनवाई चल रही है।
इसी तरह सीबीआई ने उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव ललित वर्मा के खिलाफ जन्म की तारीख के हेरफेर के मामले में अगस्त 2005 में दिल्ली की तीसहजारी विशेष अदालत में क्लोजर रिपोर्ट लगा दी। अदालत ने इसे स्वीकार करने से इंकार कर दिया। आखिरकार सीबीआई ने आगे मामले की जांच की और एक साल के भीतर ही ललित वर्मा के खिलाफ सबूतों के साथ चार्जशीट दाखिल कर दी ।
पिछले कुछ सालो के दौरान जिस तरह से सीबीआई असफल हो रही हे उकसे विश्वसनियता पर सवालियां निशान लगना लाजीमि है । आखिर जब देश की सबसे बड़ी जांच एंजेसि इस तरज असफल होगी तो जनता किससे न्याय की उम्मीद करे । जरुरत है सीबीआई को अपने काम के प्रति पारदर्शिता लाने की जिससे वह एक बार फी लोगो के विस्वास पटल पर हो ।
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