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मेरी मौत खुशी का वायस होगी ———-मिथिलेश धर दुबे

दुबे का बेबाक-अंदाज
दुबे का बेबाक-अंदाज
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जिन्दगी जिन्दादिली को जान ए रोशन यहॉं
वरना कितने मरते हैं और पैदा होते जाते हैं।

क्रान्तिकारी रोशन सिंह का जन्म शाहजहॉंपुर जिले के नबादा ग्राम में हुआ था । यह गांव खुदागंज कस्बे से लगभग दस किलोमीटर की दूरी पर है। इनके पिता का नाम ठाकुर जंगी सिंह था। इस परिवार पर आर्य समाज का बहुत प्रभाव था। उन दिनों आर्य समाज द्वारा चलाए जा रहे देशहित के कार्यों से ठाकुर साहब का परिवार अछूता ना रहा। श्री जंगी सिंह के चार पुत्र ठाकुर रोशन सिंह, जाखन सिंह, सुखराम सिंह, पीताम्बर तथा दो लड़कियॉं थी । आपका जन्म 22 जनवरी को सन् 1892 को हुआ था। ठाकुर साहब काकोरी काण्ड के क्रान्तिकारियों में आयु में सबस बड़े तथा सबसे अधिक बलवान तथा अचूक निशानेबाज थे । असहयोग आन्दोलन में शाहजहॉंपुर तथा बरेली जिले के ग्रामिण क्षेत्र में उन्होने बड़े उत्साह कार्य किया। उन दिनों बरेली में एक गोली कांड हुआ था जिसमें उन्हें दो वर्ष की बड़ी सजा दी गई । वे उन सच्चे देशभक्तों में थे जिन्होने अपने खून की अन्तिम बूद भी भारत मॉं की भेंट चढ़ा दी । रामप्रसाद बिस्मिल , अशफाक उल्ला खॉं, राजेन्द्र लाहिड़ी की तरह वे भी बहुत साहसी और सच्चे देशभक्त थे। हिन्दी और उर्दू का अच्छा ज्ञान था ।
बरेली गोली काडं का सजा के बाद उनकी रामप्रसाद बिस्मिल से भेंट हुई जो उन दिनों बड़ी क्रान्तिकारी योजनाओं का खाका तैयार करने में लगे थे। रोशन सिंह के विचारों और व्यक्तित्व से प्रभावित होकर बिस्मिल ने उन्हें भी अपने दल में शामिल कर लिया । क्षत्रिय होनेके कारण उन्हें तलवार, बन्दूक चलाने, कुश्ती और घुड़सवारी का भी शौक था। अचूक निशानेबाज थे। उनके साथी उन्हें भीमसेन कहा करते थे। ठाकुर रोशन सिंह के दो पुत्र चंन्द्रदेव सिंह तथा बृजपाल सिंह हुए। असहयोग आन्दोलन में भी ठाकुर साहब ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। काकोरी काण्ड में कुल चार डकैतियों को शामिल किया गया जिनमें अन्य डकैतियों मे ठाकुर रोशन सिंह ने बिस्मिल जी का साथ दिया था। काकोरी ट्रेन डकैती काण्ड के करीब डेढ़ महिनें बाद धरपकड़ शुरु हुई और आपको भी अन्य सहयोगियों के साथ गिरफ्तार करके लखनऊ जेल भेजा गया। जेल में क्रान्तिकारियों के साथ अच्छा व्यवहार न होने कारण आपने जेल में अनशन किया । करीब दो सप्ताह तक अनशन पर रहने के बाद भी आपके स्वास्थ्य पर कोई विपरीत असर नहीं पडा़। अंग्रेज सरकार ने उनकी हवेली को ध्वस्त करवा दिया और सारी स़म्पत्ति कुर्क करा ली थी।

अदालती निर्णय के अनुसार अंग्रेज जज हेमिल्टन ने आपको फॉंसी की सजा दी। अदालती निर्णय सुनते ही ठाकुर जी नें ईश्वर का ध्यान किया और ओम का उच्चारण किया। काकोरी केस के सम्बन्ध में वकीलों और उनके साथियों का ख्याल था कि ठाकुर साहब को ज्यादा सजा नहीं मिलेगी उनके यह विचार जानकर ठाकुर साहब को बहुत ठेस लगती थी वे बुत दुखी हो जाते थे। जब जज ने उन्हें भी फॉंसी की सजा सुनाई तो उनके साथी आश्चर्यचकित और दुखी नेत्रों से ठाकुर साहब की ओर देखने लगे परन्तु ठांकुर साहब चेहरा ठाकुरी चमक से खिल उठा। उन्होंने मुस्कुराते हुए फॉंसी की सजा पाए हुए अपने अन्य साथियों का आलिंगन करते हुए कहा क्यों भाई हमें छाड़कर आप अकेले जाना चाहते थे । उनके सभी साथियों ने उनकी वीरता पर गदगद होकर उनके चरण स्पर्श किए । फॉंसी के लिए उन्हें इलाहाबाद जेल भेज दिया गया था।

ठाकुर साहब स्वतन्त्रता की लडाई को भी धर्म युद्व मानते थे। 13 सितम्बर 1927 को उन्होंने अपने एक मित्र को लिख था कि आप मेरे लिए हरगिज रंज न करे मेरी मौत खुशी का बायस होगी, हमारे शास्त्रों में लिखा है कि धर्म युद्व में मरने वालों की वही गति होती है जो तपस्या करने वाले ऋषि मुनियों की हाती है। फॉंसी के एक सप्ताी पूर्व उन्होंने एक मित्र को पत्र भेजा था इसी से साहस और ईश्वर में विश्वास का अनुपात लगाया जा सकता है। इस सप्ताह के अन्दर ही मेरी फॉंसी होगी । प्रभु से प्रार्थना है कि वह आपके मोहब्बत का बदला दे , आप मुझ नाचीज के लिए हरगिज दुखी न हों मेरी मौत खुशी का वायस होगी।
दुनिया में पैदा होकर इन्सान अपने को बदनाम न करे। इसलिए मेरी मौत किसी प्रकार भी अफसास के लायक नहीं है। दो साल से मैं परिवार से और बच्चो से अलग हू। इस बीच वे सब मुझे कुछ भूल गए होंगे। किसी हद तक भूल जाना भी अच्छा है। तन्हाई में ईश्वर भजन का मौका खूब मिला।इससे मेरा मोह कुछ छूट गया और काई वासना बाकी नहीं रही। मेरा पूरा विश्वास है कि दूनिया की कष्टमयी यात्रा समाप्त करके मैं अब आराम की जिंदगी व्यतीत करने के लिए जा रहा हू।
फॉंसी से पहले रात ठाकुर साहब कुछ घण्टे सोए देर रात से ही ईश्वर भजन करते रहे। प्रातः निवृत्त होकर गीता का पाठ किया। प्रहरी के आते ही अपनी गीता हाथ में उठाई और फॉंसी की कोठरी को प्रसन्नता के साथ अन्तिम नमस्कार करके फॉंसी के तख्ते की ओर चल दिए। फॉंसी के तख्ते पर वन्दे मातरम् और ओम नाम को गॅंुजाते हुए भारत का ये नरनाहर अपने नश्वर शरीर को भारत की मिट्टी में मिल गया। आज ठाकुर साहब हमारे बीच नहीं है। परन्तु उनकी अमर आत्मा सजग प्रहरी की भॉंति देश के करोड़ो नवयुवको के दिल में भारत की समृद्वि और सुरक्षा की अलख युगों-युगों तक रहेगी। इलाहाबाद जेल के सामनें हजारों लोग भारत मॉं के इस सपूत की लाश को लेने के लिए खड़े थे। इलाहाबाद में ही भारत माता के इस दहादुर सपूत की अन्तिम संस्कार पूर्ण वैदिक रीति के साथ सम्पन्न हुआ ।

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